ग्राम्य मंथन - आत्मसाक्षात्कार की प्रक्रिया का आरंभ
Contributor: Kamlesh Mali
ग्राम्य मंथन - आत्मसाक्षात्कार की प्रक्रिया का आरंभ
"कुरपेच है राहें जीने कीकिस्मत इक टेढ़ी बाज़ी है,तुम हाथ पकड़ लो इरादे काराह सीधी है अगर दिल राज़ी है ।"
गुलज़ार साहब की ये पंक्तियां ज़िन्दगी की परिभाषा के साथ ही उसे जी लेने का तरीका भी बताती हुई प्रतीत होती है, जिस दुनिया में हम जी रहे हैं वहां इरादों की कमी नहीं है कमी है तो बस अपने दिल की आवाज़ को सुनने की, उसे समझने की । 28 प्रतिभागी और 13 टीम मेंबर्स जब इब्तिदा में अपने साथ लाए हुए तोहफ़े एक दूजे से बांटते हैं, तब लगता है कि हमारे पास कलेक्टिव रूप से काम करने पर कितनी क्षमता और प्रतिभा है जिसका हमें सही समय पर सही उपयोग करना है । ट्रस्ट फॉल में जब रजत बिना मुड़े अपने आप को कुछ घंटे पहले मिले 6 लोगों के हाथों में ख़ुद को पकड़ने के लिए 7 फीट ऊपर से गिरा देता है तब एहसास होता है कि हममें बाई डिफॉल्ट सभी पर विश्वास करने का कोशंट है जिसे हमने वक़्त के साथ छुपा दिया है । सौ ग्राम ज़िन्दगी में घेरे में बैठा हर शख़्स जब अपने आप को सबके सामने निर्भीक होकर खोलता है तो विश्वास और रिश्तों की मजबूती का पता चलता है जिसे हम दुनिया की भीड़ में खो चुके हैं । मेरे लिए अपनी ज़िन्दगी के किस्से सुनाना इन 10 दिनों के बाद थोड़ा और आसान हो गया है ।
जितनी बार मैं सर्कल में बैठा जो कि हमेशा 2 मिनट की शांति के साथ शुरू होता है मैंने यह जाना कि मैं कितना सरल हो सकता हूं, जब हम सर्किल में बैठते हैं तो हमारी ऊर्जा का संचार होता है सर्किल में हम सब एक जैसे भागीदार बन जाते हैं वहां कोई भी लेन देन जैसी क्रिया नहीं होती । गांव भ्रमण के दौरान जो संवेदनशीलता मेरे भीतर उपजती है वह मुझे ढेर सारे सवालों से अवगत कराती है और उन्हें समझने की तरफ़ धकेलती है जो मुझे ख़ुद से पूछने हैं । तारों के नीचे, बिना बिजली के जब सूरज ज़मीन पर बैठकर रिया की मदद से जिस खुशी और जिज्ञासा के साथ हाथों से खाना खाना सीखता है तब यह एहसास और भी गहरा जाता है कि आधुनिकता की दौड़ में हम वास्तव में कितने पिछड़ चुके हैं और साथ ही हमें किस तरह की ज़रूरत है इस बात का जवाब भी मिल जाता है । ग्राम्य मंथन हमें ख़ुद को पूरी तरह से जान लेने की प्रक्रिया में शामिल होने का अवसर प्रदान करता है जहां हम सहानुभूति से समानुभूती की ओर अग्रसर होते हैं, जब किसी और के जूतों में पैर रखते हैं तब किस तरह ख़ुद पर लादे हुए चोगे को उतार कर एक तरफ़ रख दें यह जान पाते हैं । जब एक दूसरे के प्रति अपनी भावनाओं को व्यक्त करना हो तो हमें चाहिए कि हमारा अहम और स्वार्थ उस संचार की प्रक्रिया में रोड़े न अटकाए ।
"मैंने ज़मीन चुनी है इसका मतलब,यह नहीं कि मुझे उड़ना नहीं आता ।"- नागेश
सिस्टम थिंकिंग के रास्ते जब हम अपने टीम मेंबर्स के साथ किसी बात को लेकर चर्चा करते हैं तब यह ज्ञात होता है कि हममें अनंत क्षमता होने के बावजूद भी हम ज़मीनी हक़ीक़त से जुड़कर अपने मूल्यों पर अपना जीवन व्यतीत कर सकते हैं । जब देव भईया ब्लैक और व्हाइट स्टैंड्स का अंतर बताने में जुटे थे तब मेरा दिमाग अपने विकल्पों के चुनावों के पीछे की कहानी में उलझा चला जा रहा था, उसी सर्किल में जब सिद्धार्थ कहता है कि "क्या यह ज़रूरी है कि हमारे पास जो विकल्प उपलब्ध हैं उनका चुनाव कर ही लिया जाए ?"यह सवाल हमें अपने आप से पूछने की हिम्मत होनी चाहिए कि अगर मैं चार रोटी और चावल में पेट भर सकता हूं तो पहले से 6 रोटी और ढेर सारे चावल लेकर क्यों बैठूं जो शायद किसी और के हिस्से के हैं । हममें से अधिकांश लोग यह सवाल पूछने से कतराते हैं कि हम हमारी ज़रूरतों से ज्यादा क्यों उपयोग कर रहे हैं !
हमने कभी देने के बारे में सोचा ही नहीं, ग्राम्य मंथन एक प्रक्रिया है जो हमें ख़ुद से यह सारे बुनियादी सवाल पूछने की हिम्मत देती है और अगर हम गिरे भी तो हमें अनगिनत हाथों द्वारा सुरक्षित पकड़ लिया जाता है । जागरूकता अभियान के तहत जब हम शांति यात्रा निकाल रहे थे तब मुझे याद है कि किसी ने भी 45 की गर्मी या खारे पानी की शिकायत नहीं की, कुछ मूल्य ऐसे हैं जिनके अभ्यास से ही हम सहज होना शुरू हो जाते हैं हममें उदारता अंकुरित होने लगती है । प्रोग्राम की समाप्ति पर जब हमें लाइफ सपोर्ट सिस्टम मिलता है तो हमें आश्चर्य होता है कि 10 दिन पहले मिला एक शख़्स किस तरह से हमें आकार देने में मदद कर सकता है, मुझे वो पल हमेशा याद रहेगा जब ग्राम्य मंथन के सारे प्रतिभागी और टीम मेंबर्स मोलेक्यूल मोशन के तहत सारे लोगों के गले लगकर उन्हें प्रेम का तोहफ़ा देते हैं । उस वक़्त के सारे आंसू इस बात का प्रमाण है कि करुणा और दया भाव हममें है लेकिन हम किस तरह उनका उपयोग सेवा के कार्यों में कर सकते हैं यह हमें निष्काम प्रेम के उन 10 दिनों में ज्ञात होता है, मुझे एक और घटना याद आ रही है जब दूसरे दिन के अंत में किशन भईया ने मुझे एक दीपक देकर उसे सर्किल के केंद्र में रखने के लिए दिया तब मैंने जाना कि औरों के लिए जलने पर हममें कितनी अधिक ऊर्जा उत्पन्न होती है ।
ग्राम्य मंथन व्यक्तिगत रूप से मुझे एक कहानी का प्लेटफॉर्म लगता है जिसमें हमें लाकर छोड़ दिया जाता है और फिर अपनी प्रतिभाओं, लोगों के सहयोग, समय के साथ प्रकृति तथा जीवन का सामंजस्य बिठाकर और सबसे महत्वपूर्ण अपनी सहजता को ख़ुद के साथ रखकर कैसे उस कहानी के आकार को परिवर्तित करते हैं, यह हमारे हाथ में छोड़ दिया जाता है, उम्मीद है हर कहानी सुखदायी होगी । ये 10 दिन का समय हमें ख़ुद को ख़ुद से अलग रखकर बिना किसी पूर्वाग्रह के नए लोगों से सीखने का अवसर देता है जहां हम बग़ैर किसी शख़्स को जज किए अपने वास्तविक जीवन को जीना सीखते हैं । ज़िन्दगी के हर मोड़ पर मिली किसी भी चीज़ के प्रति आदर व्यक्त करने का सबसे अच्छा तरीका यही है कि जब भी आपको मौका मिले आप किसी और के लिए खुशी का कारण बन सकें तभी सही मायनों में आप धन्यवाद कह पाएंगे । फिलहाल मैं एक ग़ज़ल सुन रहा हूं आप भी सुनिए.......
झूम ले हंस बोल ले प्यारी अगर है ज़िन्दगी,
सांस के बस एक झोंके का सफ़र है जिंदगी
झूम ले......
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