Gramya Manthan - Inner Transormation - 9 days Vipassana
ग्राम्य मंथन – आंतरिक परिवर्तन – 9 डेज विपासना
Contributor: Nageshwar Panchal
36 यात्री, आंतरिक परिवर्तन की ओर अग्रसर, इनर मंथन एक मंच - ग्राम्य मंथन | सवालो से परेशान, जवाबों की खोज में विचलित, क्यों ना इस बार सवाल बदल दिए जाए | सवाल जिंदगी में जवाब से ज्यादा स्थान घेरते है जबकि वक़्त जवाबों की तलास में गुम हो जाता है | क्या कभी हमने सवालो की तलाश की ? गर नहीं तो जवाब मिलते ही सवाल बदल जाएगा |
आंखो के सामने सबसे पहले एक वाक्य आया- Let yourself be silently drawn by the stronger pull of what you love – Rumi. कितनी दफ़ा मैंने खुद को रोका है? कितनी दफ़ा मैंने खुद को नज़रअंदाज़ कर दिया? हम खुद को बेवकूफ बनाने में इतने माहिर हो जाते है कि खुशफ़हमी को ख़ुशी मान लेते है | क्या लोग चाहते है से क्यों ना, क्या में चाहता हूँ को सुना जाए|
साबरमती आश्रम, ह्र्द्यकुंज,वक्त 5 बजकर 55 मिनट, आकाश में मेहताब की चमक और मुन्तसिर आफ़ताब, खामोश ठंड | ये वहीँ जगह है जहाँ से चंद कदम की दुरी पर भारत की आजादी की छटपटाहट गूंजती थी | जहाँ बापू अपने निवास में चरखा हाथ में लिए देश को धीरे धीरे सहला रहे थे | जहाँ भारत के तमाम दिग्गज बापू से मिलने आया करते थे और देश को किस ओर ले जाना है पर बात होती थी | आज फिर वही बात की जाए वही से की जाए | कुछ दुरी से होले होले विनोभा की प्रार्थना की आवाज़ कानो में महसूस हो रही है...वैष्णव जन को ....
जयेश भाई पटेल (मानव साधना), सफ़ेद कुरता, एक अनुपमेय आलोक, दिलखुश आवाज़, हसमुख चेहरा | मैंने गाँधी को अपनी आँखों से तो नहीं देखा पर गर गांधी होते तो बिलकुल ऐसे ही होते | संगच्छध्वं संवदध्वं...सं वो मनांसि जानताम्...देवा भागं यथा पूर्वे....सञ्जानाना उपासते | कौनसी वेदना हमें चिंतित करती है? हम कहाँ तक सम सम वेदना को अनुग्रहित कर पाते है | जब हम पास्ट में रहते है तो प्रेशर में रहते है, जब हम फ्यूचर का सोचते है तो दिमाग में फियर अपना स्थान ले लेता है, प्रेजेंट में हम प्यार कर सकते है |
हमारी आँखों के सामने एक अद्रश्य लेंस लगा है वो लेंस सारे द्रश्य बदल देता है | क्या हम हमारा लेंस निकालकर, हमारी बायसनेस एक तरफ़ रख किसी को देख पाते है ? गर नहीं तो क्या हमें पता है कि ये कहाँ से आ रहा है, इसका स्त्रोत क्या है | प्रखर भैया बड़े ही स्पष्ट रूप से कहते है कि हम से कितने लोग कूड़ा उठाने वाले का नाम जानते है | कितनी दफ़ा हमने उन्हें बराबर बैठा कर खाना खिलाया है या चाय पिलाई है | क्या ये संभव है कि आपको आपके घर खाने बनानेवाली भाई या भैया खाने पर होटल लेकर जाये | आप इसे किस तरह स्वीकार करेंगे | कभी आपने उनके साथ थिएटर में फिल्म देखी है ? ये वाक्य जिसपर पूर्ण विराम लगा है,असंख्य प्रश्न पैदा कर रहा है |
"हम ज़िदगी के हर पड़ाव पर कुछ ना कुछ कन्जूम करते रहते है और कहीं ना कहीं सोचते है कि कभी कंट्रीब्यूट करेंगे | लेकिन जरा एक नज़र गुमाइए अपने पिछले 4 सालो पर और सोचिए | कन्जूम नाऊ एंड कंट्रीब्यूट लेटर से हमें कन्जूम नाऊ एंड कंट्रीब्यूट नाऊ पर शिफ्ट होने की जरुरत है | क्या विश्व में डिमांड और सप्लाई में बैलेंस है ? गर नहीं तो कंट्रीब्यूट नाऊ पर चिंतन किया जाए और एक्शन किया जाए |"
ग्राम्य मंथन के बारे में बात करते हुए प्रखर कहते है कि क्या कोई ऐसी जगह बनाई जा सके जहाँ बाते सुनी जा सके | क्या सिर्फ़ अंडरस्टैंड से कुछ हो पायेगा ? आज विथस्टैंड की जरुरत है | विथस्टैंड सहानभूति से समानभूति की ओर ले जाता है |
निपुण भाई, एक अनुपम औरा, ज्ञान और विज्ञान का जोड़, सर्विस ( सेवा) का एक पर्याय, science tells in his own words “ I am 99.9% empty space and .1% vibration in constant flux. | उनके शब्दों में “सिंपल पेयुपल हेव डिफरेंट काइंड ऑफ इंटलिज़ेंस” | केपिटल के अलग अलग प्रारूप, रंग रूप में पाया जाता है, लेकिन डीपेस्ट फार्म ऑफ़ केपिटल जो होता है, वो होता है लव | दो अलग अलग तरह से लोग और विभिन्न कंपनिया लोगो की एक तरह से रेटिंग करती है – आई क्यू और इ क्यू | लेकिन एक रिक्शा वाला जब पैसो से भरा बेग आपको लौटा देता है तो उसे कैसे एक्सेल सीट में डालोगे ? एक तीसरा तरह का कोशेंट होता है क्म्पेस्सन कोशेंट |
एक केस स्टडी, 2 पेज़, म्यूजिक कुछ मिनट का साइलेंस..मौन की आवाज़... मत कर माया को अहंकार ..मत काया को अभिमान.. काया घार सी काची..काया घार सी काची ..जैसे ओसारा मोती...हेल्प,सर्विस और फिक्सिंग...जब हम किसी की हेल्प करते है तो कहीं ना कहीं हम में सुपिरियोरिटी काम्प्लेक्स का जाता वही दूसरी और लेने वाले में इन्फेरिटी काम्प्लेक्स आ जाता है | जब हम किसी चीज़ को फिक्स करते है तो हमारी बायसनेस में पहले ही ब्रोकन शमा जाता है | लेकिन जब भाव सेवा/ सर्विस का होता है तो समर्पण जन्म लेता है और प्यार..अनकंडीसनल लव आकर लेने लगता है |
मैं बच्चो के साथ ओर बच्चे मेरे साथ हमेशा खुश रहते है |
एक स्टूडेंट दीवार - पिडामली गाँव के सरकारी विद्यालय में बनाते हुए |
कुछ हमने लिखा है .
.चलो कुछ तुम लिखो
भ्रुपद, एक गाँव लीलापुर, एक सर्किल, भाव में जोश और एक्शन में समझ, पॉवर ऑफ़ एक्सेप्टेंस | ये गाँव है, ये सच्चाई है, कागज़ी आकड़ो से परे, जमीनी हकीकत | जब हम सुबह किसी को इम्प्रेस करने निकलते है तो शाम तक खुद डिप्रेस होकर लोट आते है | जब हम किसी चोज को सुधारने जाते है तो हम कही और दलदल में फस जाते है | गाँव को सुधारना नहीं समझना है | जयदीप भैया कहते है कि इस गाँव के लोगो को इंग्लिश तो नहीं आती लेकिन वो समझ चायनीज़, जर्मनी सब लेते है | यहाँ आने के २ महींने भीतर उन्हें ब्रह्म ज्ञान हो गया था | लगभग 10 साल से इस गाँव में बस से गए है | ये समर्पण एक आत्मशक्ति देता है |
एक बार विनोभाजी ने गाँधी से पूछा था कि हमारे काम का रिजल्ट क्या होगा? गाँधी ने बड़े प्यार से जवाब दिया कि हम जो भी करते है अंत में सब शून्य हो जाता है | हम बस हमारी संतुष्टि के लिए करते जाते है | सेवा में परिणाम का नहीं सोचा जाता | जयेश भाई जहाँ कहते है कि प्रखर( संस्थापक – यूथ अलायन्स ) बहुत क्लियर है वहीँ प्रखर भैया कहते है कि मुझे नहीं पता कि हम जो कर रहे है उसे कैसे इम्पैक्ट में डाला जाए | ये इनर चेंज है जिसे किसी एक्सेल सिट में डालना मुश्किल है |
कुछ सवाल खुद से उठाना बहुत जरुरी है कि जब हमें कोई कुछ देता है किसी भी प्रारूप में तो फ़िर हम उसे किसी अगले रूप में वापिस क्यों करना चाहते है? ये बराबर करने का कोई तरीका है क्या ? मेरे ख्याल से रिटर्न नहीं रिपीट होना चाहिए |
"व्यक्तिगत रूप से मैं इन दिनों में, एक अहम् बदलाव का हिस्सा रहा हूँ | बदलाव का विटनेस होना वाकई बहुत शक्तिशाली होता है | जब आप खुद को होल्ड करते है तो तो आपको रुकना पड़ता है आपको झुकना पड़ता है, आपके अहम आपसे प्रश्न करते है, आप खुद को बदल पाते है समझ पाते है | हेंड, हेड ओर हार्ट की ये जर्नी विपासना की तरह है और अंत में एक बात जेहन में चुपचाप घर कर जाती है कि बदलाव मुमकिन है और बदलाव जरुरी है | बैकग्राउंड में बहुत कुछ चलता है ...कहीं से आवाज़ आ रही है ...चलो सुना जाए..
ऐसा सख्त था महाराज..जिनका मुल्को पे था राज़..जिनके घर झूलता हाथी...जिन घर झूलता हाथी जैसे ओसारा मोती ...झोका पवन का लग जायेगा..झपका पवन का लग जायेगा..काया धुल हो जासी...."
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