मेरी खुद से बातें - द इकोलॉजी ऑफ़ सेल्फ़ 2.0


योगदानकर्ता: तरुण 
प्रतिफल: द इकोलॉजी ऑफ़ सेल्फ़ 2.0



जब हम चीजों को अनुभव से सीखते हैं फिर भूलते हैं और फिर सीखते हैं तब हम वास्तव में परिवर्तित हो रहे होते हैं ' ऐसा मेरा अनुभव है। यूथ अलांइन्स के साथ वो दिन मैं कभी नहीं भूल सकता हूँ। अभी मेरी एक और इच्छा है कि सभी से आमने-सामने मिलना। इतना प्यारा और सहयोग से भरपूर वातावरण जहां मैं' बातचीत' से ही अपने में बदलाव महसूस कर पाया। अपने आसपास की छोटी-छोटी घटनाओं, अपने इमोशन का असर और अपने से जुड़ी चीजों की पड़ताल करना बड़ा अच्छा अनुभव रहा। हां, इतने सालों से जो हिचकिचाहट और डर भरा हुआ है वो चंद दिनों में तो नहीं निकल पाना था लेकिन जो अनुभव और वास्तविक आजादी की भावना दोस्तों के साथ बातें करते रहने और उनको सुनते रहने से हुई वो सचमुच लाजवाब था।

घर-परिवार के किस्से , रिलेशनशिप, सेक्सुअल रूझान, स्वयं के साथ संघर्ष, अपनी पहचान को लेकर असमंजस आदि पर सभी दोस्तों ने जो खट्टे - मीठे अनुभव साझा किये वो भी सचमुच में परिवर्तन का दिया जलाए हुए हैं। मुझे एक दोस्त की एकबात याद आती है कि कैसे उसकी उपस्थिति से घर का माहौल बदला। यानि कि 'उसका होना ही क्रांति है'।  हर साथी ने अपने-अपने स्तर पर जो कुछ भी अनुभव किया और जो कुछ भी उनका विश्लेषण था उससे व्यक्तिगत स्तर पर मुझे स्वयं को जांचने समझने कि मौका मिला। जब मैंने अपने अनुभव साझा किए तो बहुत से दोस्तों ने स्वयं को उनसे जोड़ा तो मेरे मन में भाव जागा कि हम सभी अनुभव और भावनाओं के स्तर पर एक-दूसरे से गहरे जुड़े हुए हैं। बस जरूरत है तो 'बातचीत' की।

मुझे विश्वास नहीं था कि ऑनलाइन न मीटिंग भी 'बातचीत' के द्वार खोल सकती है लेकिन सबने मिलकर कर दिखाया। वर्कशॉप के लास्ट दिन जो 'ढेर सारा प्यार' एक - दुसरे की ओर प्रवाहित हुआ उससे तो मेरा प्यार, समुदाय, बातचीत जैसे शब्दों पर विश्वास पक्का हो गया।

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