Returning back to the Roots: Kamlesh's Reflection from GM

Contributor: Kamlesh Mali



जड़ों में लौटना हमेशा सुखद रहा है मेरे लिये चाहे वह फिर अपने परिवार, गाँव, देश या दुनिया किसी की भी रही हों| ग्राम्य मंथन प्रोग्राम का हिस्सा रहने के बाद से यह कभी भी महसूस ही नहीं हुआ कि कुछ लोग नए हैं या कुछ पीछे छुट गये हैं, यूथ अलायन्स परिवार से वह जुड़ाव उतना ही ताज़ा रहा जितना कि मिलने पर था, पिछले ६ महीनों में मैंने कितने लोगों से मुलाक़ात की और दोस्त बनाये लेकिन यूथ अलायन्स परिवार एक अलग ही भूमिका अदा करता रहा| इस परिवार के सदस्यों ने मुझे हर उस वक़्त में संभाला जब मुझे उनकी जरूरत थी फिर चाहे वह दूर से हो या नज़दीक रह कर|



साल के अंत में मुझे एक बार फिर सबसे रूबरू होने का मौका मिला और ग्राम्य मंथन १० के प्रतिभागियों को जानने का अवसर भी| मूल्यों की सरंचना उतनी ही सहज है जितनी कि हमारी ज़िन्दगी की, ESI में बिताये ३ दिन का अनुभव लगभग पुरे साल के अनुभव पर भारी पड़ता है, एक तरफ भाग दौड़ भरी ज़िन्दगी के ३६२ दिन और दूसरी तरफ प्रेम, सहयोग, करुणा और स्नेह के वातावरण में बिताये गये ३ दिन| यूथ अलायन्स परिवार ने इस बार सफाई विद्यालय और साबरमती आश्रम से पहचान बनाने का मौका दिया जो वाकई बहुत खुबसूरत अहसास रहा है|


सफाई विद्यालय और आश्रम के किस्से Diken Patel से सुनना और वातावरण की चमक को आत्मसात करना, जीवन की मुश्किल घड़ियों में भी सहजता और शांति भर देने वाला रहा है| सबसे यादगार पलों की बात की जाये तो उनमें चार वाकये अपना स्थान बनाते हैं| लगभग ६ महीनों के अन्तराल के बाद ग्राम्य मंथन में साथ रहे साथियों से मिलना और सारी यादें ताज़ा करना, क्यूंकि इतने वक़्त बाद भी ये रिश्ते बिलकुल नए लगते हैं, हालाँकि कुछ दोस्त काफी बार मिले भी लेकिन फिर से यूथ अलायन्स के वातावरण में मिलना अलग ही बात है| Prakhar Bhartiya भैया के साथ वक़्त बिताना और उनसे बातें करना हालाँकि इस बार मुझे केवल दो दिन ही मिले लेकिन उनके साथ हुई बातें और लम्हें यादगार ही हैं, उनके सानिध्य से ही काफी मसले हल करने के लिए साहस मिल जाता है| Kishan Gopal Laddha भैया से मुलाक़ात यूँ तो पिछले साल जून में हुई थी लेकिन जितनी यादें भी उनके साथ की हैं वह हमेशा उत्साह और स्नेह से सरोबार रही हैं, उनके साथ के क्षण चाहे वह ESI की गोद में बैठकर बिताये हों या ग्राम्य मंथन में, अपनी एक अलग ही छाप छोड़ते हैं| सबसे खूबसुरत लम्हें वह भी रहे जो जयेश भाई के साथ बीते, उनके सामने बैठकर उन्हें सुनना ही सुकून से भर देता है, लेकिन मुझे व्यक्तिगत रूप से भी उनसे रूबरू होने का अवसर मिला जब वह मुझे कुछ दोस्तों के साथ साबरमती आश्रम तक छोड़ने आये थे, उनसे अपनी ज़िन्दगी और उससे जुड़े पहलुओं पर बात करना काफ़ी रोमांचक रहा| करुणा और प्रेम की प्रतिमूर्ति, अपने होने भर से माहौल की रंगत को बदलने वाले ये तीन शख्स और यूथ अलायन्स परिवार की हकीक़त का मोल धन्यवाद शब्द तो कभी नहीं चूका पायेगा|

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